Monday, April 16, 2018

थोड़ा सा रूमानी

दाढ़ी, चश्मा और फिल्टरलेस सिगरेट वाली
जींस, कुर्ता और कोल्हापुरी चप्पलों वाली
सिनेमाई रूमानियत कब की हवा हुई
जिनके लिए यह पर्दे से बाहर की चीज थी
उन्होंने सिर सहलाते न्यूटन की तरह
जिंदगी के अगले मोड़ पर अचानक पाया कि
रूमानियत यानी पूरी जिंदगी की उदासी
यानी उतनी भी खुशी किस्मत में नहीं
जो सायक्याट्री क्लिनिक से निकलते वक्त
पर्चे पर ‘क्रॉनिक डिप्रेशन’ लिखा देखकर
अनजाने में ही चेहरे पर उतर आती है
मैंने भी देख रखे हैं कुछ रूमानी लोग
याद करता हूं उन्हें इस राहत के साथ
कि पागल या भिखमंगा के सिवाय
एक और शब्द उनके लिए मेरे पास था
यह राहत भी अब कहां बचने वाली है?
जब दुनिया में रूमानियत के जलवे थे
तब मुझे यह हवा-हवाई लगती थी
अभी तो लगती है एक ऐसा यथार्थवाद
जिसमें कतरा कर निकल लेने के लिए
कोई पतली गली आपके पास नहीं होती
जहां सही होने की गुंजाइश भीतर ही होती है
और गलतियों की सजा खुद भुगतनी पड़ती है
कह नहीं सकता, ऐसे सजायाफ्ता लोग
अभी के दौर में कितने दिन और जी पाएंगे

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